भूतिया डाकघर की कहानी - Bhutiya Daak Ghar Hindi Horror Story

भूतिया डाकघर की कहानी - Bhutiya Daak Ghar Hindi Horror Story


भूतिया डाकघर की कहानी - Bhutiya Daak Ghar Hindi Horror Story



भूतिया डाकघर की कहानी - रोहन और सुजय बुलेट राइड पर निकले थे वे दोनों दिल्ली से हिमाचल का सफर कर रहे थे सुबह से रात हो गयी वे लोग हिमाचल तक पहुंच गए थे पर अभी भी अपनी मंज़िल से दूर थे।

रोहन – भाई यही कही रुकने का इंतजाम करते है।

सुजय – यहाँ तो दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा है, थोड़ा आगे चलते है कुछ ना कुछ जरूर मिलेगा।

दोनों चिमला गांव के सरहद के अंदर आ गए ये गांव वीरान था लेकिन दूर उन्हें एक बड़ी ईमारत दिखी दोनों उसी दिशा में चल पड़े रात के अँधेरे में उन दोनों ने हॉर्न बजाया। बूढ़ा वाचमैन अपने हाथ में एक लालटेन लेकर आया।


रोहन – अरे अंकल हमें रहने के लिए कोई कमरा मिलेगा क्या? वॉचमैन – नहीं बेटा अंदर जाना सख्त मना है।

सुजय – अरे यार, एक तो पुरे दिन बाइक चलाकर कमर टूट गयी है ऊपर से कोई कमरा भी नहीं मिल रहा है।

वॉचमैन – मैं तुम्हे अंदर तो नहीं जाने दे सकता पर अगर तुम चाहो तो मेरे साथ मेरे केबिन में रह सकते हो वहाँ सोने के लिए बिस्तर भी है और तुम दोनों के लिए खाना भी।

रोहन – चलेगा अंकल आप तो ग्रेट हो आप जैसा दिलदार देखा ही नहीं कही।

दोनों लड़के वॉचमैन के केबिन में गए और फिर वॉचमैन ने उन दोनों के लिए गरमा गर्म चाय बनायीं ठण्ड बहुत थी तो दोनों दोस्तों को चाय बहुत पसंद आयी। वॉचमैन ने दोनों को खाना भी दिया और दोनों ने भर पेट खाना भी खा लिया।


रोहन – थैंक यू अंकल आपने हम दोनों की बहुत मदद की। वॉचमैन – कोई बात नहीं बेटा।

रोहन – अंकल ये तो डाकघर है ना यहाँ तो रहने का इंतजाम होता है तो इस डाकघर के अंदर जाने की पेर्मिशन क्यों नहीं है।

वॉचमैन – यह बहुत लम्बी कहानी है बेटा।

सुजय – कहानी, वैसे हमारे पास बहुत समय है आप सुनाईये मजायेगा।
                                                

वॉचमैन – ठीक है, आज से 10 साल पहले की बात है तुम्हारी तरह तीन राहगीर इस ओर आये थे उन तीनो का नाम था करन, मनोज और विनय उस समय डाकघर में लोग ठहरा करते थे। तीनो एक कमरे में ठहर गए कमरा न० 13 .

मनोज – कल सुबह होते ही यहाँ से आगे चलेंगे।

विनय – हां वैसे भी इस इलाके में है ही क्या पूरा वीरान है।

करन – हां वो तो है पर अच्छा है की इलाके में ये डाकघर है वरना हम सब क्या करते।


मनोज – क्या करते क्या मतलब खुले आसमान में सोते।

विनय – और खाते क्या घास-फुस। (वे लोग बाते ही कर रहे थे अचानक उन्हें किसी लड़की की हसी सुनाई दी)

करन – इस डाकघर में कोई औरत भी है लगता है।

विनय – मुझे तो ये हंसी अपने कमरे में ही सुनाई दे रही है।

उनमे से एक बाहर जाकर देखा तो हसी बाहर सुनाई नहीं दे रही थी।

विनय – हसी अंदर ही आ रही है। मनोज – लेकिन यहाँ कोई औरत नहीं है।

वे लोग हसी कहा से आ रही है ये खोजने लगे, अचानक डाकघर की बिजली चली जाती है और उनके सामने वो लड़की थी सुजान, सुजान का बस चेहरा ही नज़र आ रहा था।

मनोज – आप कौन है और हमारे कमरे में क्या कर रही है।

सुजान हस्ती रही और हस्ते-हस्ते तीनो राहगीरों को मौत के घाट उतार दिया। अगली सुबह बस हमें उन तीनो की लाश मिली।

रोहन – कौन है सुजान और उसका भूत इस डाकघर में कैसे आया और उसके साथ क्या हुआ।

ये जानने के लिए तुम्हे सुजान की कहानी सुननी पड़ेगी। 11 साल पहले की बात है हमेशा की तरह टूरिस्ट हिमाचल घूमने की लिए आया करते थे और कई टूरिस्ट चिमला में भी ठहरा करते थे ऐसे ही एक टूरिस्ट ग्रुप में सुजान यहाँ आयी थी।

सुजान कमरा न० 13 में ठहरी थी उस समय डाकघर के सारे कमरे फुल थे सुजान बहुत ही खूबसूरत थी, सुनहरे बाल, गोरा रंग, हर एक की नज़र सुजान पर ही थी। सुजान और उसके दोस्त दो दिनों तक चिमला में ही रुके थे।

वो यहाँ एक पहाड़ो की तस्वीरें ले रहे थे रात में वो अपने-अपने कमरे में सोने चले गए और अचानक आधी रात को सुजान के कमरे से चीखने की आवाज सुनाई दी उसके दोस्त और हम लोग वहाँ पहुंचे।
                                            
सुजान जोर-जोर से चीख रही थी हमने मिलकर दरवाजा तोड़ दिया पर अंदर कोई नहीं था उसके दोनों दोस्त कमरे के भीतर गए और सुजान को ढूढ़ने लगे और फिर अचानक सबको सुजान की हसने की आवाज सुनाई देने लगी सब ने ऊपर देखा तो सुजान छत से चिपकी हुयी थी और जोर-जोर से है रही थी।

यह मंजर देखते ही हम लोग वहाँ से भाग गए पर उसके दोनों दोस्त वही फस गए। दरवाजा अपने आप बंद हो गया और फिर हमें सुजान के दोस्तों के चीखने और चिल्लाने की आवाजे सुनाई देने लगी।

किसी में हिम्मत नहीं थी की उन लड़को को बचा सके हम सब अपनी जान बचाने के लिए ही भाग रहे थे अगले दिन हमें सुजान और उसके दोनों दोस्तो की लाश मिली। दोंनो दोस्तों का शरीर टुकड़े-टुकड़े हो चूका था और सुजान का सर अलग था पता नहीं उस कमरे में क्या हुआ।

मनोज – यह तो बहुत अजीब हुआ लेकिन सुजान के साथ आखिर हुआ क्या वह भूत कैसे बन गयी।

वॉचमैन – पता नहीं लेकिन उस दिन के बाद से जो भी इस डाकघर में रहने आया उन सबकी बस लाशे ही मिली। चिमला के लोगो ने इस डाकघर को बंद कर दिया और यहाँ किसी को रहने की अनुमति नहीं है।

सुजय – अंकल जी आपको कुछ क्यों नहीं हुआ।

वॉचमैन – क्योकि मैं कभी भी रात में डाकघर के भीतर गया ही नहीं।

मनोज – अंकल मुझे ये कहानी अधूरी सी लग रही है मुझे जानना है की सुजान के साथ उस कमरे में क्या हुआ।

वॉचमैन – अब ये तो खुद सुजान ही जानती है, वैसे रात बहुत हो चुकी है कुछ घंटे सो जाओ तुम दोनों।

वॉचमैन गहरी नींद में सो गया पर सुजय और रोहन को नींद नहीं आ रही थी वो लोग दबे पाव डाकघर की ओर बढ़ गए। डाकघर में अँधेरा था तो रोहन ने अपनी टोर्च ऑन कर ली।

रोहन – कमरा न० 13 ढूंढते है।

उन लोगो ने कमरा न० 13 की तलाश की और कमरे के अंदर जाते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया रोहन टोर्च से देखने की कोशिश कर रहा था तो तभी उसके सामने एक औरत थी। दोनों की चीख सुनकर बूढ़े वॉचमैन की नींदे खुल गयी।

वॉचमैन – हे भगवान, मना किया था मैंने इन्हे अंदर जाने से लेकिन आज कल के बच्चे बड़ो की बात कहा सुनते है।

वॉचमैन अपना सर पकड़कर बैठ गया था क्योकि वो जनता था की सुजय और रोहन की मदद नहीं कर सकता था डाकघर के अंदर जाना मौत को दावत देने के सामान था ना जाने ये भूतिया डाकघर और कितने लोगो की जान लेगा।

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